भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोसां तांई तपता धोरा देखो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोसां तांई तपता धोरा देखो
सूखै गळो बळै पग दोरा देखो

थांरा दिया चिणा चाखणिया कैवै
लागै आक चाबणा सोरा देखो

आभै उडती चिड़ी सड़क पड़ बोली
भळै बावडै ऐ दिन दोरा देखो

कागद कैवै कुवो, पण कोनी अठै
सोध-सोध हुवै लोग दोरा देखो

काळी स्याही सूं कलम कथै कूड़
ऐ मन-कागद पड़्या कोरा देखो