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कोसी इलाके का बुद्धू / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यह सड़कें बन जानी थी
यह अन्धेरा छंट जाना था
इस आत्मा को मुक्तिकामी ताकतों से
घुलमिल जाना था
ऐसा नहीं हुआ
और मैंने भी अपनी पतलून की फटे जेब को
कभी सिलाया नहीं
घास पर पड़े ओस ने मेरी प्यास बुझा दी
कुछ न मिला तो रात को ही ढक कर सो लिया
कोसी इलाके का बुद्धू था यानी मंदबुद्धि का स्वामी
जरुरत और पशुओं के लिए वनस्पतियां
पानी में बहता छोड़ आया
मछलियों ने अपनी त्वचा दी मुझे
बालू ने दिया परिधान
लाशों ने मुझे पार लगाया
सदी दर सदी
हमारा नाविक बनकर !