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कोहरे में / हरमन हेस
Kavita Kosh से
अनूठा है कोहरे में भटकना !
अकेला है हर झाड़ और पत्थर,
कोई पेड़ नहीं देखता किसी दूसरे को,
हर कोई अकेला है ।
मित्रों से भरा संसार था मेरा,
जब रोशन था मेरा जीवन,
अब जब कोहरा छा रहा है,
कोई दिखाई नहीं देता ।
सच में, कोई नहीं है समझदार,
नहीं जानता है अन्धेरे को,
अन्धेरा अपरिहार्य और निस्तब्ध है
यह उसे सबसे अलग करता है ।
अनूठा है कोहरे में भटकना,
एकाकी होना ही जीवन है,
नहीं जानता कोई आदमी दूसरे को,
हर कोई अकेला है ।
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय