भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौआ और कोयल / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘काँव-काँव’ कौए की सुन
मन करता है, सिर ले धुन।
‘कुहू-कुहू’ कोयल के बैन
सुनकर मिलता दिल को चैन।
[रचना: 21 अप्रैल 1996]