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कौन / शेखर सिंह मंगलम
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नींद में मेरा देले दरवाज़ा
कौन खटखटा रहा है
मेरे एहसासों के दरीचे पर लगा पर्दा
ये कौन हटा रहा है?
माथे की शिकन अभी-अभी
आसमानों को छू रही थी
आसमानों का क़द
फिर ये कौन घटा रहा है?
कोई पूछे उफ़क़ के
गली मुहल्लों में फिरते चाँद सितारों से
एक बेवफ़ा चली गई
दूसरी बेवफ़ा को मेरा पता
अब कौन बता रहा है?