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कौन इस पीड़ा को पहचाने / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
कौन इस पीड़ा को पहचाने
या तो मन जाने, प्रभु! मेरा, या फिर तू ही जाने
रहते हैं भय, संशय घेरे
तप, संयम से हूँ मुँह फेरे
फिर भी बैठा हूँ मैं तेरे
दर्शन की हठ ठाने
यद्यपि जीवन विफल जिया है
कनक-पात्र से गरल पिया है
तेरा पथ धरने न दिया है
भोगों की तृष्णा ने
फिर भी जिद, नभ तक यश छाये
कुछ न अलभ्य मुझे रह पाये
जग का तो सब सुख मिल जाये
तू भी सेवक माने
कौन इस पीड़ा को पहचाने
या तो मन जाने, प्रभु! मेरा, या फिर तू ही जाने