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कौन करेगा गीतों का शृंगार / अमरेन्द्र
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कौन करेगा गीतों का शृंगार, हमारे बाद।
सब तो सजा रहे हैं कोठी
सपने, महल, अटारी
तुलसी-चौरा पीछे रोती
रजनीगंधा प्यारी
रुक जाए न गंधों का व्योपार, हमारे बाद।
ये जो फूल, चटक रंगों के
पीछे नागफनी है
अब तो प्यार यहाँ पर साथी
केवल महाजनी है
रोएगा सिसकी भरभर के प्यार, हमारे बाद !
साँसों में संगीत न होगा
अधरों पर न छन्द
लुटी मिलेगीे दिल की बस्ती
मन के द्वारे बन्द
कितना सूना होगा यह संसार, हमारे बाद !