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कौन कहता है / चाँद शुक्ला हादियाबादी

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कौन कहता है लबो रुख़सार की बातें न हों
सुर्खियों की बात हो अख़बार की बातें न हों

दुश्मनों का जो रवैया है ये उन पे छोड़ दो
दोस्तों में तो कभी इंकार की बातें न हों

एक हो तुम पाँव हैं दो कश्तियों में किसलिए
इक तरफ़ हो जाओ तो बेकार की बातें न हों

सब ज़माने से न कह दें कान की कच्ची हैं ये
घर की दीवारों में अब अग़यार की बातें न हों

क्यों ज़माने को ख़बर हो जानेमन! ये जान लो
प्यार की बातों में अब तकरार की बातें न हों

"चाँद" हरदम गर्दिशे अय्याम में चलता रहा
आज इसके सामने रफ़्तार की बातें न हों।