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कौन बरतिया सीता तहुँ कैल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम के रूप और स्वभाव को देखकर स्त्रियाँ सीता से पूछती हैं कि किस व्रत के फलस्वरूप तुम्हें ऐसा दुलहा प्राप्त हुआ है। सीता व्रतों का उल्लेख करती है। फिर, दासी से राम के योग्य सेज लगाने को कहा गया, लेकिन उनकी पात्रता और प्रतिष्ठा का विचार करते हुए सीता स्वयं सेज लगाती है।
सीता घर में जाती है, जहाँ राम उससे उबटन लाने को कहते हें। आँगन में माँ-बाप तथा गाँव के दूसरे लोग बैठे हैं। सीता संकोच में पड़ जाती है। लोक-लाज के कारण वह घर से बाहर जाकर आवश्यक सामान लाने में असमर्थ है। इधर राम की आज्ञा का उल्लंघन भी वह करना नहीं चाहती।
इस गीत में भारतीय नारी के चरित्र का सुंदर चित्रण हुआ है।

कौन बरतिया<ref>व्रत</ref> सीता तहुँ<ref>तुम</ref> कैल<ref>किया</ref>, कि राम बर पाओल हे।
माघहिं मास नहायल, अगिन नहिं तापल हे।
कठिन बरत कैली एतबार, कि राम बर पाओल हे॥1॥
अँगना बोहारैते सलखि<ref>चेरी; दासी</ref>, त मोर नउरिया<ref>लौंड़ी; दासी</ref> हे।
राम जोकर<ref>योग्य</ref> सेजिया डँसि आबऽ, त रामे नींदे बाउर<ref>पागल; मत्त; खराब</ref> हे॥2॥
चेरिया के हाथ गोबराइन<ref>गोबर से सना हुआ</ref>, त औरों<ref>और</ref> छुछुराइन<ref>जिससे छुछुंदर जैसी गंध आती हो</ref> हे।
अपने हाथ सीता सेज डाँसऽ, त रामे नींदे बाउर हे॥3॥
एक गोर<ref>गोड़; पैर</ref> एहरी<ref>‘देहर’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> दोसर गोर देहरी, त दोसर गोर हे।
आँचर धै राम बिलमाबे<ref>ठहराया</ref>, कि आजु चाहि उबटन हे॥4॥
एक दिस<ref>एक तरफ</ref> बैठल<ref>बैठे</ref> माय बाप, दोसर दिस नैहर लोक<ref>लोग</ref> हे।
अजबे खियाल<ref>खयाल</ref> रामजी कैलन, कि कहाँ पैबै उबटन हे॥5॥

शब्दार्थ
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