भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन मारुति को धैर्य बँधाता! / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता
 
देख मौन लक्ष्मण को नतमुख
गये सती के चरणों में झुक
हृदय रो पड़ा ज्यों तट से रुक
                        सिन्धु पछाड़ें खाता
 
सुधि आयी अशोक कानन की
बोले --'भड़क रही लौ मन की
फूँकूँ फिर लंका रावण की
                         जी करता है, माता!
 
'कहाँ छिपे थे ये राक्षस तब!
रजक डूबा दूँ सरजू में सब
माँ! तेरा अपमान और अब
                        मुझसे सहा न जाता'

कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
आये जब रथ निकट, भाव का ज्वार न था रुक पाता