कौवे / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह
हे प्रभु !
जब चारागाह, मैदान शीत से हो आक्रान्त
जब खिन्न और ध्वस्त गाँव-खेड़ा में
चर्च की देर तक बजने वाली घण्टी शान्त हो चुकी हो
और प्रकृति हो गई हो पुष्परहित, उजाड़
तब विशाल आकाश से भेज दो नीचे इन्हें धरा पर
प्रिय और मनोहर कौवों को ।
ओ चीख़ती-चिल्लाती, काँव-काँव करती अजनबियों की सेना !
जब बर्फ़ीली हवाएँ तहस-नहस कर रही हैं तुम्हारे बसेरे,
तुम बिखर जाओ और वापस लगा लो जमघट चक्रव्यूह की तरह
पीली नदियों के दूर तक फैले किनारों पर
और बिखर जाओ उन रास्तों पर जो जाते हैं
ईसा की शहादत के प्राचीन जीर्ण चिह्नों की ओर
और फैल जाओ तुम नालों और ख़न्दकों के ऊपर ।
उड़ चलो हज़ारों की तादाद में फ़्राँस के मैदानों पर
जहाँ चिरनिद्रा में लीन हैं मृत
और लगाओ चक्कर शीत में भी क्यों नहीं !
ताकि हर राहगीर सोचने लगे पुरानी बातें ।
ओ, हमारे मातमी, काले पक्षी !
तुम बन जाओ फ़र्ज के पहरुआ ।
लेकिन, ओ आकाश के दिव्य सन्तो ! !
बलूत वृक्ष की ऊँचाई पर
एक ख़ुशनुमा साँझ में खो गया है मस्तूल — उफ़ !
और तुम छोड़ दो मई में वसन्त बुलाने वाली, चहचहाती फुदकी चिड़ियों को
उनके लिए जो सोए हैं ताबूतों में, घास के नीचे
जहाँ से वे नहीं हो सकते आज़ाद, और हार गए हैं
मौत से, भविष्यहीन ! !
मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह