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कौवे के बारे में / शहंशाह आलम

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कौवे रोज़ घर की मुंडेर पर आते हैं
जैसे नातेदारों के आने की ख़बरें लाते हैं

कौवे को अमरत्व प्राप्त है ऐसा नहीं है क़तई

कौवे जितने दिल्ली में पाए जाते हैं
उतने ही वे बंगाल बिहार उत्तरप्रदेश
महाराष्ट्र में पाए जाते हैं
उतने ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में

कौवे रोज़ शालीनता से चुनौती देते हैं कि
हम जित्ते तेज़ हैं, आप नहीं हो

कौवे की चीख़-चिल्लाहट से भागमभाग से
बेचारे कबूतरों की नींद कोसों दूर भाग चुकी है
कौवे अब फिल्मों में कबूतरों की जगह
लेना चाहते हैं सारी दुविधाओं को भगाते हुए

अपने होने की जटिलताओं से अनभिज्ञ नहीं होते कौवे
न इससे कि इनके कड़ख़ स्वभाव से संपूर्ण स्वस्थ तत्व
लगातार कम पड़ते जा रहे हैं अंतरिक्ष के

जबकि पृथ्वी की उदासी जड़ से समाप्त करने का
दावा करते रहे हैं वाचाल कौवे
कौवे ज़िद्दीपन की हद तक ज़िद्दी होते हैं
प्रधानमंत्री राष्ट्रपति गृहमंत्री और वित्तमंत्री से लेकर
तमाम दूसरे ओहदेदारों पहरेदारों
दालान पर चढ़ीं लड़कियों का मुंह चिढ़ाते हैं

ऐसा नहीं है कि कौवे प्रेमपत्र नहीं लिखते
अथवा अच्छी संभावनाओं पर ज़िक्र नहीं करते
वे बेहतर इम्कानात के लिए सपने भी देखते हैं
इस बिम्ब में इस वितान में

कौवे के प्रेम करने के बारे में
और शोर करने के बारे में
ढेर सारा लिखा गया है लेकिन
कौवे के मुंह चिढ़ाने के बारे में
किसी ने नहीं लिखा किसी भाषा में

यह कौवे द्वारा मुंह चिढ़ाए जाने का अंतिम समय नहीं है

कौवे हर मौसम में तड़के उठ जाते हैं
और मुंह चिढ़ाने का काम आरंभ कर देते हैं पूरे इस समय का।