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क्या करूँ मैं / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
छू नहीं पाया तुम्हें मैं
छू न पाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
शब्द की ही साधना की
और कुछ करने न पाया
क्या मिला मुझको पता है
बहुत खोया, सब गँवाया
सिर्फ गाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
छू न पाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
उम्र काफी हो चुकी है
थके हारे अंग सारे
शक्ति में हम क्षीणता है
धुल रहे हैं रंग सारे
कहाँ पाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
छू न पाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
साँस ये जबतक चलेगी
मैं लिखूँगा गीत प्यारे
एक दिन जब अंत होगा
तब भी होंगे गीत सारे
छोड़ जाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?
छू न पाऊँगा तुम्हें मैं
क्या करूँ मैं?