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क्या थी / महेश वर्मा
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वह इतनी सरल बात थी कहने में कि मुझे भाषा की शर्म थी उसे लिखने में वह पानी थी अपनी सरलता में और हवा थी अपनी पुकार में, साफ़दिली में इसके रेशे सुलझे हुए थे होने के कारण भी साफ़ थे
अगर दुःख थी यह बात तो यह संसार के सबसे सरल आदमी का दुःख था यह भूख थी अगर तो उन लोगों की थी जो मिट्टी के बिस्कुट गढ़कर दे रहे थे अपने बच्चों को जो बीच बीच में देख लेते थे आकाश
अगर यह हत्या थी तो यह एक आदिवासी की ह्त्या थी ।