भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या बताऊं खुद को कैसे दर बदर मैंने किया / वसीम बरेलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या बताऊं , क सा ख़ुद को दरबदर मैंने किया
उम्र-भर किस किस के हि स्से का सफ़र मैने किया

तू तो नफ़रत भी न कर पायेगा इस िशद्दत के साथ
जिस बला क प्यार, तुझसे बेख़बर मने किया

कै से बचचों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म
ज़िन्दगी-भर तो किताबों का सफ़र मने किया

किसको फ़ुसर्नात थी कि बतलाता तुझे इतनी-सी बात
ख़ुद से क्या बतार्नाव तुझसे छूटकर मैने किया
 
चन्द जज़्बाती-से िरश्तों के बचाने को 'वसीम'
कै सा-कै सा जब्र अपने आप पर मने किया