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क्या भाया ? / नेमिचन्द्र जैन

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क्या भाया ?

अनजाने मन क्यों इस कोलाहल में खिंच कर बह आया ?

वे वन की संध्याएँ निर्जन

मदिर-अरुण पीली

भोली-सी नीली

सूना निर्झर-तीर,

कहीं से मौलसिरी का परिमल उन्मन

लाया सिहराता समीर--

भर लाया ।

नन्हीं चिड़ियों का कलरव सुन

पूछ-पूछ उठता था तब मन

क्या गाया--

भोली चिड़ियों ने क्या गाया ?

ये उलझे आवरण यहाँ के

बन्धन की काया

झूठी जीवन की परिभाषा

रीते-से आडम्बर की ओछी-सी अभिलाषा--

इस कोलाहल के अंचल में आ कर क्या पाया ?

क्या पाया?

क्यों मन खिंच कर बह आया ?


(1937 में प्रयाग में रचित)