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क्या हुआ इरशाद भाई / जय चक्रवर्ती

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क्या हुआ इरशाद भाई!

न तो कोई फोन न कोई खबर
जा बसे हो आज कल जाने किधर
शहर है यूँ तो हमारा एक ही –
पर महीनों तक नहीं मिलती नज़र

कर रहे हो क्या कमाई?

जी सकें संसार मे इस आस मे
काम पहले भी बहुत थे पास मे
हों थकाने लाख चेहरों पर मगर-
दीखते थे हम सदा उल्लास मे

आज क्यों पल-पल जम्हाई?

काटते थे शाम हम होकर इकट्ठे
बाँटते थे दर्द मीठे और खट्टे
ज़िंदगी की दौड़ मे सब खो गए अब–
मुलाकातें, बैठकें, वो हँसी–ठट्ठे

वक़्त कितना है कसाई!