क्या है ? / ऋषभ देव शर्मा
सुनो!
हवा ने
एक दिन
मेरे कान उमेठे;
मैंने यूँ ही पूछा –‘क्या है?’
उत्तर मिला –‘प्यार I
दूसरे दिन
एक फूल ने
मेरा गाल थपथपाया;
मैंने चौंक कर पूछा –‘क्या है?|
उत्तर मिला –प्यार I
तीसरे दिन
बिजलियों ने
मेरे होंठ छूए;
मैंने सहम कर पूछा –‘क्या हैं’?
उत्तर मिला –‘प्यार’I
चौथे दिन
मौसम ने
मुझे बांहों में दबोच लिया;
मैंने गुस्से में पूछा –‘क्या है‘?
उत्तर मिला –‘प्यार’
पाँचवें दिन
इंद्र्धनुष
मेरे आँचल में बॅंधा गया;
मैंने संकोचपूर्वक पूछा –‘क्या है‘?
उत्तर मिला –‘प्यार‘
छठे दिन
मेरी गोद में
सूरज था;
मैंने विवश होकर पूछा –‘क्या है?’
उत्तर मिला –‘प्यार‘I
सातवें दिन
मुझे तश्तरी में
परोसा गया था
मैंने कराहते हुए पूछा –‘क्या हैं?’
एक उत्तर
मेरे मांस के
टुकड़े को
दांतों तले चीथता हुआ
किचकिचाया –‘प्यार’I