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क्यों अपनी ज़रूरत का ही आवाज़ा हो / रमेश तन्हा

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क्यों अपनी ज़रूरत का ही आवाज़ा हो
औरों की तलब का भी कुछ अंदाज़ा हो
हो कस्र-ए-अना में भी रसाई की सबील
रौज़न हो, दरीचा हो कि दरवाज़ा हो।