क्यों न बाबा ? / कृष्णा वर्मा
क्यों न भैया- सा मुझको
बाबा तुमने पाला
उसके जीवन भरी रोशनी
मुझे न तनिक उजाला
माखन मिश्री दूध मलाई
न लाड़-प्यार मनुहार
जन्मदिवस भी आम दिवस से
बीते बिन उपहार
न मेले ठेले न स्कूल
न काँधों पे बस्ता
मैं भी तो हूँ अंश तुम्हारा
क्यों न दी फिर समता
कोमल मन मेरा कभी न झाँका
होंद मेरी को तुमने केवल
इक आफ़त सा आँका
वंश रखेगा जीवित भैया
देगा तुम्हें सहारा
इसीलिए घी मक्खन से तर
पोसो उसे निवाला
देकर तो देखा होता मुझको भी
बस मुठ्ठी भर प्यार
मुझसे भी ज़रा जोड़ देखते
भैया वाली तार
रक्त वसा मज्जा मेरी हड्डियाँ
तेरा ही उपहार
मुझ कांधों में भी तेरा पौरुष
ढो लेते समभार
काहे दिया न बाबा मुझको
भैया -सा सम्मान
मेरे जन्मते सोच लिया बस
यह तो पर सामान
मैं भी तो तेरे जीवन का
हूँ अमोल इक हिस्सा
पर हाथों में सौंपने का फिर
कौन गढ़ गया किस्सा
तुम भैया सा थाम लेते जो
बढ़कर मेरा हाथ
टिके न होते ठोस ज़मी पे
तनुजा के थरथरे पाँव
भैया वाले फ्रेम में मढ़ लेते
जो मेरी भी तस्वीर
बदल न जाती क्या बाबुल
तेरी बिटिया की तकदीर।