भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों रुदनमय हो न उसका गान / गोपालदास "नीरज"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों रुदनमय हो न उसका गान!

मृत्यु का ही कर भयंकर
भग्न छाती पर अरे घर
पूर्ण जो कर सके अपने हृदय के अरमान।
क्यों रुदनमय हो न उसका गान!

क्या करेगी शान्त उसका
हृदय-मदिरा की मधुरता
शान्ति केवल पा सके जो उर बना पाषाण।
क्यों रुदनमय हो न उसका गान!

क्या हृदय-अभिलाषा उसकी
और मधु की प्यास उसकी
अश्रु से ज्योतित करे जो आँख का सुनसान।
क्यों रुदनमय हो न उसका गान!