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क्योंकि / जोशना बनर्जी आडवानी
Kavita Kosh से
क्योंकि कविताएँ लिखने के लिये
बिस्तर मे घुसकर भी जंगल
हो जाना पड़ता है
बन जाना पड़ता है
पेड़ ,कछुआ, तेदुँआ ,जंगली
चिड़ियाँ वगैरह वगैरह
क्योंकि खानाख्वारी के लिये
खुद के ही हाथों खुद की ही
ज़ुबां काट लेनी पड़ती है
बन जाना पड़ता है कुदाल,
कलम ,गाड़ी का इंजन ,
बधिर वगैरह वगैरह
क्योंकि प्रेम करने के लिये साँस
साँस हरिकेन होना पड़ता है
बन जाना पड़ता है महासागर,
हाथों पर पड़ा फफोला,
दीमक ज़दा किताब ,चाँदनी
वगैरह वगैरह
अलबत्ता एक बधिर जंगली
चिड़ियाँ महासागर पार करने
की ठान बैठी है ....