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क्योंकि आदमी हैं हम (4) / हरीश बी० शर्मा


प्रभु !
इतने स्वार्थी मत बनो
मानवता के नाते आओ
हे अवतार !
हे तारणहार !
हमें इन अमानुषों
समाजकंटकों से बचाओ
कब तक हम
इन दानवों से लड़ सकते हैं
आखिर तो बाल-बच्चेदार हैं
परिवार-घरबार भरापूरा संसार है
कैसे बिखरती देख सकती हैं
मेरी इंसानी आंखें
यह सब।