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क्रोध आ प्रेम / गंग नहौन / निशाकर
Kavita Kosh से
क्रोध
बनबैत अछि
मानुखकें वनमानुख
सिखबैत अछि
अपराधक विज्ञान
पिअबैत अछि
अपन माहुर।
प्रेम
बनबैत अछि
मानुखकें मानुख
सिखबैत अछि
जिनगीक जीबाक कला
सुअदबैत अछि अमृत।
क्रोध
जाबत धरि बँचल रहत
पोसाइत रहत
मानुखक मोनमे
विकृति
आकार लैत रहत
अहंकार।
सभ किछु खत्म भऽ जाएत दुनियामे
तैयो बचतैक
प्रेम
आ ओकर इतिहास-भूगोल।