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क्रौंच से पूछ / प्रमोद कुमार
Kavita Kosh से
कभी माँगा नहीं गया किसी प्रार्थना में
न पढ़ा गया किसी क़िताब में,
लीक से पटे तुम्हारें रास्तों से बाहर
ऊबड़-खाबड़
कई अँधेरे-उजाले से भरा रास्ता है इसका
और इसके बोल ऐसे कि
मौन चलने के दिन गए,
यह अपनी बोली से
सब के मुँह खोलता जा रहा
वर्षों के ठहराव के बाद
यात्रा के गीत घुल रहे हवा में,
ख़ुशी के ऐसे जन्म पर
हतप्रभ हैं सारे जेलों के द्वारपाल
उन्होंने अपनी कागद की लेखी से
इसे एक बूढ़ा नाम दे दिया
इसे पकड़ने के लिए,
तुम दूसरों के कहे नाम से
इसे न पुकारो,
संभव है, तुम्हारा क्रौंच भी वहीं बिंधा हो
जहाँ इसका बिंधा है,
तुम इसके क्रौंच से पूछकर इसे बुलाओ,
तुम्हारे लिए इसका नाम
तुम्हारे पुकारने पर है,
फिर अपने रखे नाम से
पुकारने का
अपना एक अलग आनन्द भी तो है ।