भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्लोन मानव / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘क्लोन’ बेबी “ईव” जबसे आया है,
सारी दुनिया में तहलका मचाया है।
उपलब्धि अच्छी है अगर सही इस्तेमाल हो,
परन्तु मानव के गुण-रूप पर प्रश्न चिह्न लगाया है।
इस भागम-भाग की ज़िन्दगी में,
मानव का एक शरीर कम पड़ता है,
अत: वो अपने “क्लोन” तैयार करायेगा,
और फिर अपना हमशक्ल तैयार करायेगा।
फिर न कोई असली होगा,
और न कोई नकली होगा,
क्योंकि वो असली का ही,
हूबहू हमशक्ल होगा।
“क्लोन” के कई फायदे हैं,
किन्तु उसके कुछ कायदे हैं,
जिसका “क्लोने” पैदा होगा,
असली का मूल्य कम होगा।
कभी वो असली,कभी लगेगा नकली,
उसे देखकर खुद को भूल बैठोगे आप,
और खुद को देखकर कह उठोगे,
कहीं मैं नकली तो नहीं?
काश! इन्दिरा गांधी का “क्लोन” होता,
गांधी,शास्त्री और नेहरू का “क्लोन” होता,
तब आज की राजनीति कुछ और होती?
कम से कम देश की ऐसी दुर्दशा तो न होती।
“क्लोन” का एक और फायदा है,
अब कोई स्त्री विधवा न होगी,
क्योंकि पति का हमशक्ल तो रहेगा ही,
और वो असली का काम करेगा,
सोचो कितनी सुन्दर होगी यह दुनिया?
हर शख्स की कमी ‘क्लोन’ से भर लेगी यह दुनिया,
जीवन-मरण का बंधन ही टूट जायेगा,
क्योंकि मोक्ष का विभाग ही खत्म हो जायेगा।,
“क्लोन से कई खतरे हैं,
जैसे गलती करेगा “क्लोन”
लेकिन पीटे आप जाओगे,
क्या तब भी आप अपना “क्लोन” बनवाओगे???