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क्षण-क्षण की छैनी से / हरीश भादानी

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क्षण-क्षण की छैनी से
        काटो तो जानूँ!


    पसर गया है घेर शहर को
    भरमों का संगमूसा
    तीखे-तीखे शब्द सम्हाले
    जड़ें सुराखो तो जानूँ !


क्षण-क्षण की छैनी से.....


    फेंक गया है बरफ छतों से
    कोई मूरख मौसम
    पहले अपने ही आँगन से
    आग उठाओ तो जानूँ!
क्षण-क्षण की छैनी से.....


चौराहे पर प्रश्न चिह्नसी
    खड़ी भीड़ को
    अर्थ भरी आवाज लगाकर
    दिशा दिखाओ तो जानूँ !


क्षण-क्षण की छैनी से
    काटो तो जानूँ !