क्षणिकाएँ / ममता व्यास
छूना और छू लेने में
उतना ही फर्क है
जितना
जीना और जी लेने में
XXX
मन भर प्रेम मांगा था
तुम तो तराजू ले आये...
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अकेलापन
कोख से शुरू होता है
और
कब्र तक चलता है साथ
XXX
जो जीवन भर भयभीत रहे प्रेम से
उन्होंने खूब लिखीं प्रेम कविताएं
जो समंदर की गहराई से डरते थे
उन्होंने गहराई पर की गंभीर चर्चाएं
XXX
मेरी आत्मीयता
तुम्हारा ध्यान भंग कर देती है?
अब से तुम अपना ध्यान संभालो
मैं अपनी आत्मीयता...
XXX
तार तो तुम्हारी गिटार के टूटे थे
मैं व्यर्थ में ही कोसती रही
अपनी उँगलियों को...
XXX
उसने कहा --
कि बात करना, प्रेम करना नहीं है।
प्रेम करना, बात करना नहीं है।
वो बोली, ठीक है अब ये बताओ
अबसे से प्रेम करूँ या बात?
चलो ऐसा करते है अबसे सिर्फ प्रेम करते हैं
आज से बात बंद ...
XXX
मैं बेहोशी में लिखती हूँ तुम्हे
तुम होश में ही पढना मुझे
ओह, तुम्हे होश नहीं आया अबतक
तो मैं बेपढ़ी रहूँ?
पर कब तक?