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क्षणिकायें-3 / शमशाद इलाही अंसारी

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1.

खा के तीर मरने से पहले जो चेहरा देखा,
वो मेरे दाहिने हाथ के मानिंद था,
जब भी हुई तफ़शीस किसी कत्ल की
क़ातिल हमेशा मक़्तूल का बग़लग़ीर था|
(रचनाकाल : 03.09.2009)

2.

ज़िन्दगी में न ज़िन्दगी से तू उदास हो कभी,
ये वो जाम है कि भर-भर के पिया जाता है|
(रचनाकाल: 15.09.2002}

3.

दुश्मनी में न कर पाँयेगे मेरा बाल भी बाँका
है रक़ीबों को मश्विरा की दोस्ती कर लें|
(रचनाकाल: 10.11.2005)