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क्षमैव / गीत चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
आज घर में झाड़ू लगाया है मैंने
परदे साफ़ कर दिए हैं
बिखरी किताबों से तुम चिढ़ती थीं
आज इन्हें भी क़रीने से रख दिया है
कपड़ों में ख़ुद ही कर ली है प्रेस
बर्तन भी धो दिए हैं
आज इतने दिन बाद तुम्हारे सिर पर रखा है तेल
तुम्हारे शरीर की मालिश भी कर दी है
नहीं, नहीं
धन्यवाद की कोई ज़रूरत नहीं
मैं धो रहा हूँ कुछ पुरानी ग़लतियाँ