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खग उड़ते रहना / गोपालदास "नीरज"
Kavita Kosh से
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
मत डर प्रलय झकोरों से तू,
बढ आशा हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
यदि तू लौट पडेगा थक कर,
अंधड काल बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर।
खग! उडते रहना जीवन भर!
और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों पर।
खग! उडते रहना जीवन भर!