भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खटपट-खटपट / गोपीचंद श्रीनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोयल दीदी
खाकर गाती-
मीठे, मीठे आम रे!
गिल्लो रानी
कुटकुट खाती
बैठी ले बादाम रे।
गौरैया जी
बैठ डाल पर
करती हैं आराम रे।
सूरज दादा
लौट चले हैं
ढल जाती जब शाम रे।
खेल-कूदकर
हम भी चल दें
अपने-अपने काम रे।
मीठी मम्मी
घर में करती
खटपट-खटपट काम रे।
डगमग-डगमग
बाबा चलते
पकड़ लकड़िया थाम रे।
आँख मूँदकर
मेरी दादी
लेती हरि का नाम रे।

-साभार: नंदन, दिसंबर, 1996, 30