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खतरनाक दौर के युवा / गुलज़ार हुसैन
Kavita Kosh से
हम उस दौर के युवा हैं
जिस दौर में कुपोषित बच्चों को गोद में लिए
सरकारी अस्पतालों के बाहर खड़ी स्त्रियां
सबसे अधिक अप्रत्याशित खतरे से घिरी हैं
और टीवी पर झाड़ू की प्रदर्शनी दिखाई जा रही है
जिस दौर में दिन दहाड़े एक ही दलित परिवार के सभी सदस्यों के अंग- प्रत्यंग काट दिए जा रहे हैं
सरे राह युवतियों को निर्वस्त्र कर
गली-गली घुमाया जा रहा है
नरसंहारों के बाद डरे- सहमे समुदायों को खुलेआम
विदेश भगा देने की धमकी देने वालों को उच्च -निर्णायक कुर्सियों पर बैठाया जा रहा है
और दूसरी तरफ
टीवी पर इस उभरते ताकतवर देश के प्रतिनिधि झूम-झूम कर नाच - गा रहे हैं
'सामूहिक सेल्फ़ी सभाओं' और खर्चीली शादियों की लाइव कवरेज हो रही है
क्या हम सचमुच सबसे खतरनाक दौर के युवा हैं?