भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खरगोस / दिनेश बाबा
Kavita Kosh से
रेसोॅ में लागी खरगोस
व्यर्थ गँमैलक आपनो होस
कान उठाबै, हाथ उठाबै
मानी लेलकै आपनो दोस
बौव्वा कन पकड़ाय केॅ ऐलै
मानी लेलकै होकरोॅ पोस
बौव्वा के गेंदे संग उछलै
पोला छै पर लागै ठोस
एक्के बेर त चोटे लागलै
गिरी क तब होलै बेहोस
कान पकड़थैं उठी क भागलै
छन्हैं में जैसें बारह कोस
ऐलै एक तबेॅ खरगोसनी
देखथैं तब होलै मदहोस
दंड खुसी सें पेलै छै अब
संग मजा सें खेलै छै अब