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ख़लल / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
Kavita Kosh से
खलल पड़ता है
चीख़ से सन्नाटे में
मशाल से अँधेरे में
न्याय से व्यस्था में
आईने से ख़ुशफ़हमी में
ख़िलाफ़ रुख़ से
हवा में ख़लल पड़ता है
सबके लिए
बेहतर जीवन के ख़याल से
उनके जीवन में
पड़ता है ख़लल