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ख़लिश की इन्तहा देखी है तुमने? / संकल्प शर्मा
Kavita Kosh से
ख़लिश की इन्तहा देखी है तुमने?
निगाहों की ख़ता देखी है तुमने?
मेरे सीने का खालीपन पता है?
मेरे दिल की खला देखी है तुमने?
तुम्हें कैसे दिखाऊँ अपनी आहें?
कहो तो! क्या हवा देखी है तुमने?
तुम्हें मालूम कैसे ख़त्म होगा?
सफ़र की इब्तेदा देखी है तुमने?
मेरे जी में जो है यूँ ही नहीं है,
कसक यूँ बेवज़ह देखी है तुमने?
मैं बेबस था यही मेरी ख़ता थी,
ख़ता की ये सज़ा देखी है तुमने?
फिराक ऐ यार जो सहते हैं उनके,
लबों पे इल्तेज़ा देखी हैं तुमने?
नज़र रखते हो हर हरकत पे मेरी,
मेरे लब पे दुआ देखी है तुमने?
बहुत मग़रूर हैं ये हसरतें भी,
कभी इनकी अदा देखी है तुमने?