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ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा / बुल्ले शाह

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ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा।
कुछ नहीं ज़ोर घिङाणा<ref>व्यर्थ</ref>।

गए सो गए फेर नहीं आए,
मेरी जानी मीत प्यारे।
मैं बाज्झों पल रहिन्दे नाहीं,
हुण क्यों असाँ विसारे।
विच्च कबराँ दे खबर न काई,
मार केहा झुलाणा।

ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा।
कुछ नहीं ज़ोर घिङाणा।

चित्त पाया ना जाए असाथों,
उभ्भे साह ना रहिन्दे।
असीं मोयाँ दे परले पार होए,
जीविंदेआँ विच्च बहिन्दे।
अज कि भलक तगादा<ref>माँग, दावा</ref> सानूँ,
होसी वड्डा कहाणा।

ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा।
कुछ नहीं ज़ोर घिङाणा।

ओत्थे मगर प्यारे लग्गे,
ताँ असीं एत्थे आए।
एत्थे सानूँ रहण ना मिलदा,
अग्गे कित वल्ल धाए।
जो कुझ अगलिआँ दे सिर बीती,
असाँ भी ओह टिकाणा।

ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा।
कुछ नहीं ज़ोर घिङाणा।

बुल्ला एत्थे रहण ना मिलदा,
रोन्दे पिटदे चल्ले।
इक्क नाम धन्नी दा खरची है,
होर पया नहीं कुझ पल्ले।
मैं सुफना सभ जग भी सुफना,
सुनणा लोक बिबाणा<ref>सुनसान</ref>।

ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा।
कुछ नहीं ज़ोर घिङाणा।

शब्दार्थ
<references/>