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ख़ामोशी / आरती कुमारी
Kavita Kosh से
रिक्तता से भरा ये जीवन
पुलकित हो उठा था
तुम्हारे आने की आहट मात्र से ही
ख्वाहिशें.. धड़कनों के हिंडोले पर
मारने लगी थी पेंग
उमंगे ...मचलने लगी थी
ले लेकर अंगड़ाइयाँ
और
सपनों के रोशनदान से झांकती
तुम्हारे प्यार के उष्मा की नरम किरणें
जगाने लगी थी सोये हुए अरमानों को मेरे
पर
बढ़ती उम्र ने दिल के दरवाजे पर
लगा दिए है सांकल
और ठिठका दिया है तुम्हारी यादों को
कहीं दूर..
बंद कर दिये है तजुर्बे ने
चाहत की वो सारी खिड़कियाँ
जिससे तैरकर
उतरने लगी थी मेरे भीतर
तुम्हारी खुशबू
और समझदारी ने कर दिया है
उदासी और घुटन के
घुप्प अंधेरे में जीने के लिए मुझे विवश
एक लंबी खामोशी के साथ...!