भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ामोशी / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
कपड़ों से
दाग धोते-धोते
उसकी ख्वाहिशें भी
सफ़ेद हो गई थीं
वह अब ...
लफ़्ज़ों से भी ज़्यादा
ख़ामोश रहने लगी है ..!!