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ख़ालीपन ये कौन भरेगा / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
बिना बताए
चले गए तुम
कटें नहीं दिन-रात !
रात सुहानी
महके रानी
बेला और चमेली
बिना तुम्हारे
ख़ाली-ख़ाली
लगती रही हवेली
ख़ालीपन ये
कौन भरेगा ?
किससे करते बात ?
कोमल-कोमल
दूब उगी है
मन है ओस नहाया
सोंधी-सोंधी
हवा बही है
जिसमें राग समाया
इसी राग से
आग जगी है
तपे हमारे पात !
बिना नीर के
नदिया कैसी ?
बिना चाँदनी चँदा ?
बिना प्राण के
लगता जैसे
माटी का हो बँधा !
मत तरसाओ
वापस आओ
मिलन बने सौग़ात !