ख़ुदा-ए-बरतर / फ़राज़
ख़ुदा-ए-बरतर<ref>ईश्वर महान</ref>
ख़ुदा-ए-बरतर
मिरी महब्बत
तिरी महब्बत की रिफ़अतों<ref>ऊँचाइयों</ref>से अज़ीमतर<ref>श्रेष्ठतर है</ref>है
तिरी महब्बत का दरख़ूरे-एतना<ref>सहानुभुति</ref>
फ़क़त बेकराँ<ref>केवल असीम</ref>समुंदर
कि जिसकी ख़ातिर
सदा तिरी रहमतों के बादल
कभी किसी आबशार<ref>झरना</ref>की नग़्मगी<ref>गाने की ध्वनि, संगीत</ref>के मोती
कभी किसी आबजू<ref>नदी</ref>के आँसू
कभी किसी झील के सितारे
कहीं से शबनम, कहीं से चश्मे, कहीं से दरिया उड़ा के लाए
कि तिरे महबूब को जलालो-जमाल बख़्शें<ref>प्रताप और सौंदर्य प्रदान करें</ref>
तिरी महब्बत तो उस शहनशाह की तरह है
जो दूसरों के हुनर से, ख़ूने-जिगर से
अपनी वफ़ा को दवाम बख़्शे<ref>स्थायित्व</ref>
मगर मिरी बे-बिसात<ref>सामर्थ्य से परे</ref>चाहत
फ़क़त मिरे आँसुओं से
मेरे लहू से... मेरी ही आबरू से
रही है ज़िंदा
अगर्चे उस बेबज़ाअती <ref>निर्धनता</ref>ने
मुझे हमेशा शिकस्त दी है
मगर ये नाकामी-ए-तमन्ना भी
इस महब्बत से कामराँतर <ref><सफलतर</ref>,अज़ीमतर है
जो अपनी सित्वत<ref>दबदबा</ref>के बल पर
औरों की आहो-ज़ारी<ref>विलाप</ref>से
अपने जज़्ब-ए-वफ़ा<ref>प्रेमाकर्षण</ref>की तश्हीर<ref>विज्ञापन</ref>चाहती है
मेरी मुहब्बत ने
जो भी नाम-ए-हबीब <ref>प्रियतम का पत्र</ref>
से कर दिया मानून<ref>अर्थवान,अर्थपूर्ण</ref>
वो हर्फ़ मेरा है, मेरा अपना है
ऐ ख़ुदा-ए-बुज़ुर्गो-बरतर!