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ख़ुदाया कभी करम मुझ पर भी / विनय प्रजापति 'नज़र'

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ख़ुदाया<ref>ऐ ख़ुदा</ref> कभी करम मुझ पर भी
सुम्बुल<ref>प्रेयसी</ref> की थोड़ी मेहर इधर भी

प्यार क्या है नहीं जानता,
मगर सिखा मुझको ये हुनर भी

तेरे ख़ाब सजाये आँखों में
ख़ाब है चाँद है सहर<ref>सुबह</ref> भी

इश्क़ की आग जो इस दिल में है
एक अक्स<ref>प्रतिबिम्ब</ref> रहे इसका उधर भी

मोहब्बत का दावा किया जो
मैं करूँगा रोज़े-महशर<ref>मृत्यु के दिन, प्रलय के दिन</ref> भी

चाहिए अगर जान भी ले लो
मगर लेना मेरी कुछ ख़बर भी

शब्दार्थ
<references/>