भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ूब तमाशा रे / ब्रजमोहन
Kavita Kosh से
ख़ूब हुआ जीवन का ख़ूब तमाशा रे
कुएँ का पानी ही है देखो प्यासा
जब तक है आँखों पर पट्टी जमूरे
तब तक हैं जीवन के सपने अधूरे
कब समझेगा रे मदारी की भाषा
मरे साँप और न मरे नेवला ही
ताली बजाकर के दे तू गवाही
यही खेल चलता रहे बारहमासा
हम भेड़ वो भेड़िए हैं रे भाई
ख़त्म कैसे होगी बता ये लड़ाई
अब फेंक रे उलटा तू उनका पासा