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ख़ूब बजाए बीन घोड़ा राजा का / सुरेन्द्र सुकुमार

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खूब बजाए बीन घोड़ा राजा का।
नाचे ता तक धीन घोड़ा राजा का।

काना है असवार काफ़िला अन्धा है,
चाँदी की है जीन घोड़ा राजा का।

एक टाप गद्दी पर दूजी जनता पर,
ऐसा है संगीन घोड़ा राजा का।

ये घोड़ा तो बिल्कुल ही मायावी है,
कर लो यार यक़ीन घोड़ा राजा का।

खींचो जरा लगाम और मारो कोड़ा
होगा लंगड़दीन घोड़ा राजा का।

1980 में ’सारिका’ में प्रकाशित ग़ज़ल