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ख़ूबसूरत लगा चाँद कल / रमेश 'कँवल'
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खूबसूरत लगा चांद कल
मैंने उसको सुनार्इ ग़ज़ल
ख़्वाब के झील में ले गर्इ
ख़ूबसूरत सी उसकी पहल
शहर में फिर धमाका हुआ
गांव कस्बे गये फिर दहल
ख़ूबसूरत खिलौनों को छू
सारे बच्चे गये कल मचल
डायबेटिज़ का मत साथ दे
तू सवेरे-सवेरे टहल
सादगी ने किया बेज़ुबां
क्या बयां आपका है'कंवल’