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ख़्वाब इन आँखों ने तो अक़्सर सजाये हैं / हरकीरत हीर

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ख़्वाब इन आँखों ने तो अक़्सर सजाये हैं
पर कहाँ ये हो मुकम्मल यार पाये हैं

दूरियाँ रखते रहे हैं यह उजाले भी
दीप हमने आंसुओं से ही जलाये हैं

ज़िन्दगी थी लेके बैठी फूल झोली में
फूल हमने दर्द के हँसकर उठाये हैं

अब न कोई ख्याल तेरा,ख़्वाब आँखों में
लाश तेरी हम मुहब्बत दाह आये हैं

पास आके रूठ जाती है मुझीसे तू
ख़ूब नख़रे ज़िन्दगी तूने दिखाये हैं

हो गए वीरान नादाँ हैं मग़र कितने
याद उनकी आज़ भी सीने लगाये हैं

टूटकर यूँ तो उन्हें था 'हीर' ने चाहा
आज़ वो जो हो गए उससे पराये हैं