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ख़्वाब पलकों से जब हटाते हैं / पूजा बंसल
Kavita Kosh से
ख़्वाब पलकों से जब हटाते हैं
आप धुँधले से क्यूँ हो जाते हैं
इक पहेली हूँ मुझको सुलझाओ
आप तो ख़ुद उलझ से जाते हैं
चाहते दिल बयां है पलकों से
आप दिल में कहाँ समाते हैं
जाते जाते पलट के तकना उफ़
इस तरह प्यार वो जताते हैं
अक्स कहते थे जो मुझे अपना
अब ख़ताएं मेरी गिनाते हैं
शह्र में शोर मच गया हर सू
आप धड़कन ही यूँ बढ़ाते हैं
दिल ने सजदा किया है जिस दर पर
हम वहीं सिर को भी झुकाते हैं
हुस्न ए दामन नहीं पशेमाँ और
इश्क़ की रस्म हर निभाते हैं
आपके पास बीते जो लम्हें
रोज़ इक याद छू के जाते हैं