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ख़्वाहिश / अमरजीत कौंके

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ऐसे रखो तुम मुझे पास अपने
जैसे तुम्हारी देह पर वस्त्र
तुम्हारे माथे की बिंदिया जैसे
जैसे तुम्हारे हाथों के कंगन
तुम्हारे गले की माला जैसे
तुम्हारे पाँवों की पायल
जैसे तुम्हारे कुर्ते के बटन
मुझे यूँ रखो तुम पास अपने

मुझे यूँ रखो तुम पास अपने
तुम्हारे होठों पर मुस्कान जैसे
तुम्हारी कजराई आँखों में जैसे
जगमगाते हैं सपने
अपने हृदय में जैसे तुम
सहेज कर रखती हो अहसास

यूँ रखो तुम मुझे पास अपने
वृक्ष जैसे संभाल कर रखते
घोंसलों को
पानी को बाहों में भर के रखते
जैसे किनारे
गोरे हाथ छिपा के रखते जैसे मेहँदी का रंग
आकाश संभाल के रखता जैसे चाँद तारे

तुम यूँ रखो मुझे पास अपने
समुद्र संभाल कर रखता
जैसे मछलियों को
आकाश जैसे पक्षियों को
फूल सँभालते जैसे तितलियों को
साँसें संभाल कर रखती जैसे हवाएँ
सुहागिने जैसे मांग में सिंदूर संभालती
बच्चों को पल भर के लिए दूर
नहीं करती माँएँ

तुम यूँ संभाल कर रखो
मुझे पास अपने
कि तुम्हारे होठों पर नृत्य करते हैं
गीत जैसे
तुम मुझे गीत बना कर
अपने होठों पर रख लो
मैं तुम्हारे होठों पर
मचलता रहना चाहता हूँ।