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खांचा / संजय आचार्य वरुण
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एक खांचादार
मोटी अलमारी ज्यूं
हुवतौ जाय रैयौ है
म्हारौ सैर।
हर आदमी
बड़़ बड’र बैठ रह्यौ है
आप आप रे खांचा मांय
आ सोच’र
के अबै नीं निकळणौ है
म्हानै म्हारै
खांचै ने छोड’र।
म्हनै लखावै
खांचा में बैठां मिनखा रै
मन में भी
पड़ रह्या है
सायत केई खांचा।