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खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए
होने पाए न उनको खबर देखिए
आप देते रहे हैं दुआएँ हमें
उन दुआओं का हम पर असर देखिए
रेगजारों<ref>मरुस्थल</ref> में भी फूल खिल जाएँगे
मुस्कुरा कर फक़त इक नज़र देखिए
अब लहू दिल में बाकी नहीं, जो बहे
खोलकर, मेरा ज़ख्मे-जिग़र देखिए
देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया
हुस्न का आइने पर असर देखिए
आग लग जाए न तन बदन में कहीं
छू न होटों से जाएँ अधर देखिए
उसने हँसकर कहा, फिर मिलेंगे 'रक़ीब'
अब तो होने को आई सहर<ref>सुबह</ref> देखिए
शब्दार्थ
<references/>